सुजाता
सुबह की किरन संग होगा जनवरी का आगमन,
छुप जाएगा दिसंबर, रात के गहरे अंधकार में सिमटकर।
सिर्फ एक रात की दूरी, बस इतनी सी बात,
फिर भी नहीं हो पाती कभी उनकी मुलाकात।
दिसंबर की आखिरी रात जश्न से जगमगाती,
खुशियों के नगमे हर दिल है,गुनगुनाती ।
पर दिल के कोने में रह जाता एक मलाल,
जनवरी-दिसंबर का मिलन रह जाता अधूरा हर साल
जैसे दो प्रेमी, जिनकी राहें हमेशा जुदा,
हर साल की दास्तां, वही गहरी खता।
पर उम्मीद के सितारे फिर से चमकते हैं,
शायद अगली बार दोनों मिलकर महकते हैं।
रहेगा इंतजार, कि हो कोई करिश्मा नया,
जनवरी-दिसंबर संग थाम लें एक-दूजे का हाथ।
और नई सुबह का ऐसा हो आगाज,
कि मिट कर हर फासले, हो जाए मिलन।